ओडो ना चादरिया बाबा, हम तो आए तुमरे द्वार...

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19वां उर्स मुबारक: हजरत ओढ़ी वाले बाबा का सालाना जश्ने उर्स शुरू, आज होगा समापन ..



- रात में हुआ तकरीर और महफीले मिलाद का आयोजन



*एक नजर में:*

पंपावती नदी के किनारे स्थित हजरत ओढ़ी वाले दाता रेहमतुल्लाह अलेह का सालाना उर्स सांप्रदायिक सौहार्द के रंग में रंगा नजर आ रहा हैं। मुस्लिम समाज के साथ हिंदू समाज के लोगों ने भी दादाजी के दरबार में आकर अपनी हाजरी दी और उनके चोखट पर मथ्था टेका और अकीदत के फूल चढ़ाए।




मालवा लाइव।पेटलावद

पेटलावद। सांप्रदायिक सौहार्द्र और शांति केमाहौल में गुरुवार को हजरत ओढ़ी वाले बाबा का सालाना उर्स महोत्सव चादर जुलूस के साथ शुरू हुआ। जुलूस में मुस्लिम समाज में जबर्दस्त उत्साह देखने को मिला। हालाकि आचार संहिता के कारण जुलूस रूट में बदलाव हुआ था जो राजापुरा से शुरू होकर बाबा की दरगाह पर पहुंचा। यहीं नही हर समुदाय के नागरिको ने चादर जुलुस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर कोमी एकता की मिसाल कायम की।

*सुबह हुआ गुस्ल व संदल:*

सुबह फजर की नमाज के बाद दरगाह पर हजरत को पारंपरिकरूप से गुश्ल और संदल दिया गया। संदल की खुश्बू से मजार दमक उठी। जायरिनों ने दाता के मजार पर सलाम पढ़ा। इसके बाद फातेहा पढ़ी गई। शहर में संदल शरीफ और चादर जुलुस निकाला गया। इसमें हजरत के दीवाने सिर पर चादर, हार-फूल, फल व मिठाई लिए चल रहे थे। जुलूस में बग्गी में 115 वर्षीय दर्शनी संत ताजदारे मलंगा सैय्यद मासूम अली शाह मलंग बापू मदारी और उनके बाल सैय्यद रफीक अलीशाह मलंग बैठे थे, जिनके दीदार समाजजनों सहित अन्य धर्मों के लोगो ने भी किए। 

 *जावेद सरफराज ने पेश किए बाबा की शान में कलाम:*

रतलाम से आए कव्वाल जावेद सरफराज चिश्ती ने हजरत ओढ़ी वाले दाता की शान में कलाम पेश किए। मेहमानों ने नजरानों की झड़ी लगा दी। राजापुरा में कव्वाल ने मेरे शंकरा भोलेनाथ भजन की प्रस्तुति भी दी, जो काफी पसंद की गई। 

*आस्ताने ओलिया पर पेश की चादर:*

दरगाह पर चादर जुलूस पहुंचने के बाद ‘ओडो ना चादरिया बाबा ’ पढ़ते हुए चादर जुलूस आस्ताने ओलिया पर पहूचा। जहां चादर पेश की गई। यहां फखरे मलंगा रफीक अलीशाह मलंग ने फातेहा पड़ी। उर्स में अकीदतमंदो के पहुंचने का सिलसिला देर शाम तक चला। जुलूस में बुजुर्ग सूफी-संतो और मुस्लिम समुदाय के साथ हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं ने भी शिरकत फरमाकर दरगाह पर अकीदत के फूल चढ़ाकर अमनो-अमान की दुआएं मांगी।

*जिस देश की धरती पर मेरे ख्वाजा बसे हैं उसका कोई भी दुश्मन कुछ नहीं बिगाड़ सकता: सैय्यद मासूम अली बापू मलंग*

रात में महफिल मिलाद में तकरीर और नात पढ़ी गई। उर्स के मौके पर दूर दराज से जायरीन भी शामिल हुए। महफिल में सैय्यद मासूम अली शाह मलंग बाबा ने कहा कि जिस देश की धरती पर मेरे ख्वाजा बसे हैं उसका कोई भी दुश्मन कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मलंग वे होते हैं जो बाल्यकाल से ही दीन-धर्म व मानवता की सेवा के लिए सन्यास धारण कर लेते हैं। उन्हें भौतिक सुख-सुविधाओं से कोई लेना-देना नहीं होता। मलंगों का काम सिर्फ लोगों में मानवता व मोहब्बत का पैगाम फैलाना होता है। उन्होंने कहा मलंगों का काम दीन-धर्म की खिदमत करना है। संतों के दरबार में जो भी आता है उसे ज्ञान मिलता है। उन्होंने कहा सूफियों, साधू, संतों को राजनीति से हमेशा दूर रहना चाहिए। वे भी राजनीति से दूर हैं और राजनीति की चर्चा भी नहीं करना चाहते। उन्होंने पेटलावदवासियों को ऐसे ही मोहब्बत व प्यार के रास्ते पर चलने का संदेश भी दिया।

उन्होंने इस्लाम में औरतों के मुकाम को बताया। उन्होंने नशा सहित सभी गलत कामों से दूर रहने की हिदायत देते हुए शरीयत के बताए कानून पर चलने एवं कुरआन की तिलावत करने, रोजा-नमाज कायम करने, जकात देने के साथ हज करने का आह्वान किया। 

*सूफी-संतों का काम जोड़ने का,तोड़ने का नहीं: सैय्यद रफीक अली शाह मलंग*

तकरीर में सैय्यद रफीक अलीशाह मलंग ने कहा सूफी, संत दूध की तरह साफ होते हैं। सूफी, संतों के दरबार में जो भी आता है उसे ज्ञान मिलता है। धार्मिक कट्टरता रखने वाले व संप्रदाय को तोड़ने वाले किसी भी हाल में धार्मिक नहीं हो सकते। सूफी, संतों का काम लोगों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। सूफी, संत हमेशा वतन और ईश्वर से मोहब्बत करने वाले होते हैं। हिंदूस्तान सूफी, संतों की जागीर रही है और रहेगी। सूफी, संत सदैव देश में एकता व भाईचारा की भावना का संदेश देते रहे हैं और देते रहेंगे। नातख्वाह तोसीफ अली बाबा ने एक से बडकर एक कलाम पेश किया। अंत में सलाम पढ़कर रफीक अली मलंग ने देश मे अमन चैन, खुशहाली और भाईचारे के साथ रहने ओर देश को कोरोना जैसी बीमारी से निजात की दुआ मांगी। इसी के साथ उनके साथ सैय्यद असगर अली बापू (बड़ौदा), आलिम हसरत रजा, हाफिज आदि मौजूद थे। 

*15 फीट लम्बे बाल बने आकर्षण*

सैय्यद रफीक अलीशाह मलंग बाबा के 15 फीट लम्बे बाल लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। इसके चलते लोग उनके करीब पहुंचकर बालों को देखने के साथ फोटो भी ले रहे थे।

*कौन हैं ये मलंग-*

बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि मलंग कौन हैं। मलंग वे सन्यासी व साधू होते हैं, जो बाल्यकाल में ही सन्यास धारण कर लेते हैं। बाल्यकाल से ही दीन, धर्म मानवता सीखने लगते हैं। मलंग कभी भी अपने बाल नहीं कटाते, न ही साबुन, शैम्पू, तेल जैसी चीजों का बालों में उपयोग करते हैं। अपने बालों को वे भस्म लगाकर सुरक्षित रखते हैं। काली व विशाल पगड़ी इनकी पहचान होती है। झाबुआ जिले में पहल बार आए बुजुर्ग मलंग सूफी सैय्यद मासूम अलीशाह के सिर के बाल तो 20 फीट लंबे हो चुके हैं।

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