पेटलावद। एक ही भूमि को दो जनों को विक्रय करने षड्यंत्र दरअसल विक्रेता ओर उसके साथियों (दलाल) ने मिलकर रचा। वास्तव में मौके पर तो जगह थी नही क्युकी दादाजी उस जगह को सारंगी के सीधे सादे लोगो को 1988 में ही विक्रय कर चुके थे। पर खाते में जगह दर्शा रही थी।
यहां हम अवैध रूप से बसी कालोनियों में रहने वालों को सतर्क करना चाहते है कि किस प्रकार से इस अवैध कालोनिनाइजर ने 10 फिट के रास्ते निकालकर प्लाट बेचे ओर जो 10 फिट की जगह जिसे रोड दर्शाया गया है लेकिन अवैध रुप से क्युकी कोई नक्शा पास तो हुआ ही नही। इस कारण विक्रेता के खाते में भूमि दर्शा रही थी का फायदा उठाकर लंबे समय से बिना निर्माण के पड़े प्लाट को विवादित लोगो को लड़ाई झगड़े के हिसाब से विक्रय कर दिया।
जी हाँ हम बात कर रहे है नगर के माधव कालोनी की ही। अब बात धीरे धीरे पाठकों को समझ आने लगी होगी ओर कौन दो भाई, कौन शिक्षक है पिक्चर साफ होती जा रही होगी। हम आने वाली खबर में मय प्रमाण के नामो का खुलासा करेंगे और माननीय कलेक्टर ओर सहायक आयुक्त से निवेदन करेंगे कि शिक्षक रहते हुए धोखाधड़ी करने वाले के खिलाफ मामले की जांच बैठाए ओर दोषता सिध्द होती ही नॉकरी से बर्खास्त करे।
यहां अब दो बाते ओर महत्वपूर्ण है कि माधव कालोनी के साथ अन्य अवैध कालोनी में रहने वाले सावधान हो जाए कही यह फर्जी कालोनी काटकर प्लाट विक्रय करने वाले कल को आपके घरों के बाहर की भी जमीन विक्रय कर सकते है। क्युकी कालोनी रेरा में पंजीकृत नही है इसलिए सरकार के पास रोड का कोई रिकार्ड नही है। दशकों पहले से विक्रय हो रहे प्लाट के आगे के रास्ते आज भी मूल भूमि स्वामी के खाते में चली आ रही है।
बस इसी का फायदा उठाया और तार फेंसिंग किए गए प्लाट को विक्रय कर दिया। जबकि दादाजी ने बेच दिया था तो उनके पुत्र जो निष्ठावान शिक्षक थे ने दादाजी का मॉन रखते हुए उसे बेचा हुआ ही माना। लेकिन बच्चो को उच्च शिक्षा देने का दावा करने वाले महोदय जी की नीयत डोल गई और सीधे सादे भाई के साथ मिलकर दादाजी का वेचा हुआ प्लाट फिर से बेच दिया।
इस षड्यंत्र में सीदा सादा भाई भी फंस गया। खैर पैसे की लालच बहुत बुरी बला है। किसे बुरी लगती है। इसी कारण पैसे की लालच में अपराध कर बैठे।
आपको बता दे तहसीलदार कोर्ट ने दोनों के नामान्तरण क्यो किए यह बड़ा प्रश्न है ? लेकिन इसका जवाब भी दस्तावेज देते है।
कोर्ट ने पहले रजिस्ट्री को सही मानते हुए, कब्जाधारी माना, इसका प्रमाण आसपास रह रहे 30 साल के रहवासियों ने दिय्या ओर पंचनामे पर हस्ताक्षर भी किए।
सिद्ध हो गया कि 1988 की रजिस्ट्री जो पहले की गई थी सही है। लेकिन चुकी रजिस्ट्री हुई क्युकी खाते में जगह दर्शा रही थी (रोड की जगह जो खाते पावती में से कम नही हुई थी) नामान्तरण को स्वीकृति दे दी।
लेकिन मौके पर जगह है नही। सूत्र यह भी बताते है कि विक्रेता को भी मालूम था कि दादाजी ने जगह बेच दी। पर कुछ पेसो का लालच रजिस्टर्ड अपराध करवा बैठा।
यह प्रमाणित हो गया है इन चीजों से की विक्रेता भाई अपराध में शामिल हो गए। जिसमे विक्रय शुदा भूमि की पुनः रजिस्ट्री करवाना, नामान्तरण पर दबाव बनाना, 4 बार 181 का सहारा लेना,पटवारी-तहसीलदार पर फोनोटेनिक दबाव बनाना, अधिकारियों को नॉकरी की धोस देना। यह सभी शासकीय रिकार्ड में दर्ज है। तहसीलदार न्यायालय ने अपराध करने की स्वीकारोक्ति ओर यह स्वीकार करना कि क्रेता दो साहब दूसरी जगह पफ कब्जा दे दूंगा। यह सभी ऑन द रिकार्ड मौजूद है। किसी प्रकार की मनघडंत कहानी नही है।
परते खुलने के साथ यह भी दस्तावेज आ रहे है कि दादाजी पिताजी पेटलावद से लेकर आसपास के गाँव मे बहुत समपत्ति छोड गए। उनके जाने केबाद नियत खराब हुई दोनों भाईयों के नाम चडवा लिए लेकिन बहनों के साथ 420 कर ली। क्युकी उनको भी नही जानकारी की जमीन कहा कहा है इससे प्रशासन को भी गुमराह किया गया।
कहा कहा नाम नही चढ़ा यह भी दस्तावेज ही प्रमाणित करेंगे हम नही। भले स्वीकृति बहनों से ले ली लेकिन नामान्तरण करने वाले अधिकारी तहसीलदार एसडीएम से पंचनामे मेबात छुपाई ओर शपथ पत्र इसबात का देना की हम पिता की केवल दो ही संतान है। इस प्रकार के मामले भी प्रमाणित होकर ही बाहर आएंगे। चाहे फिर कोई सीना ठोककर कहे कि हमने तहसीलदार, पटवारी को भी मैनेज किया है।