उपलब्धियों का इतिहास रचता झाबुआ का, साहित्य साधक डॉ रामशंकर चंचल

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झाबुआ। टुडे रिपोर्टर                      
8 अप्रैल 1957 में जन्मे झाबुआ के रानापुर कस्बे में डॉ रामशंकर चंचल बचपन से ही लेखन में बेहद रुचि रखते हुए आगे बढ़ते गए कक्षा सात ,आठ में ही उनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी थी। बाल साहित्य में यह कर्म आज उम्र के 64 साल में भी उसी तरह जारी और ज्यादा सक्रिय हो आज देश के महान साहित्य साधक को में एक है। डॉ रामशंकर चंचल पर उनकी साहित्य साधना पर बनी सही है युटुब चैनल की फिल्म चंचल की साहित्यसाधना उनके अभी तक की साहित्य साधना का कुछ अंश मात्र है। जिसे देखकर देश के हजारों साहित्यकार अचंभित हो गाए है।
डॉ चंचल की इस फिल्म को देश में करीब अभी तक चार हजार आठ साहित्यकारों साहित्य और साहित्य प्रेमियों द्वारा सुना जा चुका है।
आज देश की करीब चार पांच सौ  प्रत्रिका में आपकी हजारों रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है । अपकी मौलिक कृतियों की पचास से ज्यादा कृतियों का प्रकाशन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। वही पचास कृतियां डॉ रामशंकर चंचल ने खुद अपने प्रकाशन से निकली अद्भुत योगदान हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। सचमुच बेहद गर्व महसूस होता हैं।
एक साहित्यकार ने उनकी साहित्य साधना को देखकर लिखा है कि डॉ चंचल एक जीवन में इतना सम्भव नहीं जितना आप लिख चुके हैं। हजारों रचनाओं के जनक डॉ रामशंकर चंचल की रचनाओं का अनुवाद कई भाषाओं में अनुवाद हुआ वही आपकी कई रचना  आज देश के कई पाठयक्रमों में शामिल हैं। कक्षा छह से बीए, एमए तक में विदेशों में हिन्दी विद्यार्थी पड़ रहे हैं सैकडो अंतर राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशन हुआ।
हाल में ही उनकी एक ताजा कृति जनजाति आदिवासी अंचल की हिन्दी कथाओं का अनुवाद प्रकाशित हुआ अंग्रेजी में अनुवाद किया डॉ पुलकिता आंनद ने जो  अंतर राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुआ। यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि आदिवासी अंचल पर लिखी हिन्दी कथाओ का अंग्रेजी में अनुवादित हुआ और देश विदेश के बहुत बड़े प्रकाशक द्वारा प्रकाशन ।
यही नहीं उनकी रचनाएं का ख़ूब खूब प्रसारण आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण हुआ सालों से यह क्रम जारी है वही आज उनके लिखे गीत गाजलो और कविता को देश के चर्चित स्वर साधकों द्वारा स्वर लहरियां से सजाया जाता है जिसे लाखों लोग सुनते और आनंद के साथ खूब सराहना करते हैं उनकी रचनाओं का इंतज़ार होता हैं । डॉ रामशंकर चंचल की लिखी कथा काली पर इसरो द्वारा फिल्म भी बनी जिसे नेशनल पुरस्कार दिया गया । विश्व हिन्दी सम्मेलन फिजी में देश के महान स्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के साथ आमंत्रण मिला था। झाबुआ जैसी जगह में रहकर हिन्दी साहित्य में स्थापित हो देश विदेश में अपनी लेखनी से पहचान बनाना सचमुच बेहद गर्व महसूस होता हैं। झाबुआ मध्य प्रदेश का पिछड़ा क्षेत्र है जहां शिक्षा और साहित्य की बात करना बेईमानी लगती है वहा एक रचनाकार अपनी वर्षों की साहित्य साधना से पूरे देश और विदेश में अपनी और जिले प्रदेश की पहचान बनता है वह सचमूच अद्भुत और मां सरस्वती कृपा ही कहीं जा सकती हैं
ऐसी कोन सी उपलब्धियां है जो उनके पास नहीं है आज लाखों उनके प्रशंसक हैं आदरणीय फिर भी उन्हें देखकर उनकी सहजता विनम्रता और सादगी को देखे तो सचमुच बेहद   आशर्च होता हैं कमाल की सादगी वहीं बेहद उर्जा से सदा की तरह आज भी सक्रिय ।
सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मानों और पुस्कारो से समानित है। चंचल उम्र के चौसठ वर्ष में भी बेहद सक्रिय हो साहित्य सेवा में समर्पित।

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