फर्जी रजिस्ट्री मामलाः फर्जी रजिस्ट्री के 4 आरोपियों को जेल, न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला

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पेटलावद। फर्जी दस्तावेज तैयार कर फर्जी रजिस्ट्री कराने के मामले में सालो बाद परिवादी के पक्ष में फैसला आया है। मामले में  आरोपितों को को विभिन्न धाराओं में दंड से दंडित किया। अपर सत्र न्यायाधिष मनोहरलाल पाटीदार ने आरोपी 4 आरोपितों को 3-3 वर्ष का कठोर कारावास व  5-5 हजार रूपए का आर्थिक दंड से दंडित किया है।  

यह था पूरा मामला-

परिवादी हेमला, लच्छीराम, वैष्या  और सुरसिंह ने आरोपी नानुराम, कुकला, हरिराम, मड़िया के खिलाफ धारा 294,419,420,423,467,468,471,477/34 व 120 (बी), 506 भादवि के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया था। इसके बाद उन्होनें विचारणीय प्रकरण होने के कारण इसे 17 सितंबर 2018 को सत्र न्यायालय को उपार्पित कर दिया था। जिसमें बताया गया था कि 21 जनवरी 2009 को ग्राम छोटा बोलासा सारंगी में स्थित कृषि भूमि सर्वे क्रमांक 244 है, जिसका 1.26 हेक्टेयर रकबा है। यह जमीन हेमला के स्वामित्व थी। इसी जमीन पर नानुराम, कुकला,, मड़िया और हरिराम ने मिलकर षडयंत्रपूर्वक फर्जी रजिस्ट्री करा ली। इस फर्जी रजिस्ट्री में हेमला के स्थान पर कुकला फर्जी तौर पर हेमला बन गया और विक्रेता के रूप में कुकला ने रजिस्ट्री पर अपना फोटो चिपका लिया और नानुराम फर्जी तौर पर क्रेता बन गया और इसके दोनो रिष्तेदार मड़िया व हरिराम गवाह बन गए। इन्होनें डुप्लिकेट पावती तत्कालिन पटवारी से बनवा ली। जब इसका पता हेमला को लगा तो हेमला ने पुरानी नकले निकलवाकर देखा तो पता चला कि फर्जी बिक्री से हेमला का नाम कम ेिकया गया और फर्जी रजिस्ट्री करवा ली गई। इसके बाद मामले में गवाह और सबूत पैष होते गए और अंत में न्यायाधीष ने सभी 4 आरेापियों को फर्जी रजिस्ट्री के इस मामले मंें दोषी पाया और फैसला परिवादी के पक्ष में सुनाया। मामले में नानुरार पिता हरदु औसारी, कुकला पिता नानिया पारगी, मड़िया पिता धुला गरवाल और हरिराम पिता कालू गरवाल को धारा 420/120(बी), 467/120(बी), 468/120(बी), 471/120(बी) भारतीय दण्ड संहिता 1860 के तहत 3-3 वर्ष का सश्रम कारावास और 5 हजार रूपए के अर्थदंड से दंडित किया है। इसके साथ ही अगर अरोपीगण अर्थदंड अदा नही करते है तो 6 माह का  अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतना पड़ेगी। इस प्रकरण की पैरवी शासकीय अधिवक्ता मीरा चौधरी ने की थी।

एसपी-कलेक्टर ने आखिर क्यो नही लिया संज्ञान-

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करने से पहले एसपी कलेक्टर से इसकी षिकायत की थी तो उन्होनें आखिर उसकी षिकायत पर क्यों संज्ञान नही लिया। आखिर क्यों आरोपियों पर कार्रवाई नही की गई। जब कोई कार्रवाई नही हुई तो फिर बाद में पीड़ित ने न्यायालय की शरण ली और आखिर देर से ही सही, लेकिन फैसला उसके पक्ष में आया आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। सबसे बड़ी विडंबना की बात यह है कि ये लालफिताषाही अधिकारी आमजन और गरीबों की परेषानियों को गंभीरता से नही लेते है, जिसके कारण उन्हें कोर्ट में न्याय के लिए गुहार लगानी पड़ती है। अगर जिस समय पीड़ित अपनी परेषानी लेकर अधिकारियों के पास जाते है उसी समय उसकी षिकायत को गंभीरता से लिया जाए तो शायद गरीबों और पीड़ितों को न्यायालय की शरण में न जाना पड़े। इस मामले ने एक बार फिर सरकारी सिस्टम की पोल खोल दी है।

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